हा हा हा ..... | इन ख़बरों को पढ़ कर मुझे हंसी क्यों आ रही है ? इसलिए कि कोई उन बातों पर ध्यान नहीं दे रहा है जो इन ख़बरों से उभर कर आती हैं और जो हमारे गणमान्य पत्रकार लिख नहीं रहे या लिखना नहीं चाहते |पहली बात : जो व्यक्ति अपने पैसों से तीन महीने तक पाँच सितारा होटल में रह सकता है वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं है | वह उन ०.०१ % भारतियों में से है जिनके जन्मे अथवा अजन्मे पोतें-पोतियों को भरण-पोषण के लिए कभी काम करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी | जाहिर है कि वे विमान के पहले दर्जे से ही यात्रा करने के आदी है | उनके लिए विमान का साधारण दर्जा 'मवेशी क्लास' ही है | अगर उनके मुंह से गलती से यह सच निकल ही गया तो उसके लिए इतना बवाल मचाने की क्या आवश्यकता है | इससे एक बार फिर यह सिद्ध होता है जो मैं अपने दूसरे लेखों में भी लिख चुका हूँ कि भारत की राजशाही और आम जनता में इतना बड़ा अंतर आ गया है कि राजशाही की सोच भी जनता तक नहीं पहुँच पा रही है | और यहीं से मेरी दूसरी बात चालू होती है |दूसरी बात : भारत की राजशाही को यह भी नहीं पता कि असली 'मवेशी क्लास' क्या होती है | उन्होंने कभी उज्जैन से इंदौर का सफ़र बस से तय नहीं किया है क्योंकि अगर किया होता तो उन्हें विमान का साधारण दर्जा जहाँ आराम से बैठने को गद्देदार सीट होती है, वातानुकूलन होता है, सुन्दर परिचायिकाएं द्वारा भोजन दिया जाता है , सपने में भी 'मवेशी क्लास' नहीं लगता | अगर कोई यह जानना चाहता है कि असली मवेशी क्लास क्या होती है तो वह उज्जैन से इंदौर की यात्रा बस से जरुर करे | तब उन्हें पता लगेगा कि किस तरह बसों में लोगों को [ मवेशियों की तरह ] ठूंस ठूंस कर तब तक भरा जाता है जब तक कि चढ़ने वाली पहली पायदान पर एक व्यक्ति लटकने न लगे और चालक के बगल से लेकर गियर बॉक्स के ऊपर तक एक एक इंच की जगह भर ना जाये | और अगर कोई भी इस व्यवस्था का विरोध करने का प्रयास करता है तो उन्हें मवेशियों की ही तरह हड़का कर चुप करा दिया जाता है | मुझे पूरा विश्वास है कि यही हाल भारत के दूसरे साधारण शहरों के परिवहन साधनों का भी है | गाँवों और कस्बों के परिवहन साधनों के बारे में तो चर्चा करना ही बेकार है | लेकिन यहाँ किसे फुर्सत है कि असली 'मवेशी क्लास' के बारे में लिखे, चर्चा करें या सुधारने का प्रयास करे | अगर गांधी परिवार के सदस्य इस असली 'मवेशी क्लास' में यात्रा कर के दिखाएँ तो मैं उन्हें मानूं | और यहीं से मेरी तीसरी बात चालू होती है |तीसरी बात : समस्याओं से भागना और अपनी कमजोरियों से बचना, यहाँ तक कि उनके बारें में चर्चा भी न करना हमारे राष्ट्रीय चरित्र का अभिन्न अंग है | यह कब से है यह तो कह नहीं सकता परन्तु इतने ख़राब हालात एक दिन में तो नहीं बनते उनके लिए वर्षों या दशकों लगते हैं | आम जनता और राजशाही दोनों ही शशि थरूर से इसलिए नाराज़ है क्योंकि उन्होंने मजाक मजाक में उस शब्द का प्रयोग कर दिया जो उन्हें याद दिलाता है कि भारत की आम जनता की सही स्थिति क्या है | दोनों ही जल्दी से जल्दी थरूर से क्षमा मंगवा कर या इस्तीफा दिलवा कर मामले को ख़त्म कर फिर से अपने अपने मोहपाश में खो जाना चाहते हैं |
Friday, September 18, 2009
शशि थरूर और ...........
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सिर्फ उज्जैन से इंदौर ही क्यों, पचासों ऐसे जगह हैं... मैं खुद अलग अलग नंबर के दिल्ली में बस पकड़ता हूँ वो भी तो मवेशी क्लास है, थुरूर को भारतीय राजनीति की जानकारी नहीं है, वो नए हैं... जो भी बोल रहे उल्टा हो जा रहा है... अब उनहोंने माफ़ी भी मांग ली है... सभी जानते हैं बस दिखावे के लिए... अब तो जनता की ख़ुशी (आला नेताओं की खातिर) ही इकोनोमी क्लास में बैठेंगे...
ReplyDeleteनवरात्र की मंगल कामनाएँ.
ReplyDeleteआपका हिन्दी चिट्ठाजगत में हार्दिक स्वागत है. आपके नियमित लेखन के लिए अनेक शुभकामनाऐं.
एक निवेदन:
कृप्या वर्ड वेरीफीकेशन हटा लें ताकि टिप्पणी देने में सहूलियत हो. मात्र एक निवेदन है बाकि आपकी इच्छा.
वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?> इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये!!.
हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं.........
ReplyDeleteइधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं....
आपकी तीसरी बात, पहली होनी चाहिए थी। क्यूंकि वही सबसे बड़ा सच है। आज मैंने भी इसी मुद्दे पर लिखा है लेकिन आपसे थोड़ा उलट।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखा आपने .. नए चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteshashi tharur nahi satta ka garur.narayan narayan
ReplyDeleteअच्छा व्यंग लगे रहिये
ReplyDeleteस्वागत है