Monday, August 24, 2009

जिन्ना, जसवंत और पाकिस्तान...


हनीफजी के दूसरे ही वाक्य में पाकिस्तान की वर्तमान परिस्थिति की पूरी कहानी छिपी हुई है | दूसरों की गलतियां पढ़ने या समझने से कोई आगे नहीं बढ़ सकता उसके लिए उसे स्वंय की गलतियां को समझना और उन पर परिश्रम करना ज्यादा जरुरी है | जिस राष्ट्र की बुनियाद केवल नफरत की भावना पर रखी गयी हो वह राष्ट्र कभी प्रगति नहीं कर सकता क्योंकि उसकी सारी उर्जा उस नफरत को पोषण करने में चली जाती है और वह अपनी प्रगति के मार्ग पर चलने की उर्जा नहीं जुटा पाता | मुझे लगता है कि पाकिस्तान के साथ कुछ यही हुआ है | और यहीं मुझे लगता है गांधीजी का भारत को बहुत बड़ा योगदान रहा है | उन्होंने हमें हिंसा और नफरत जैसे नकारात्मक विचारों से बचाए रखने का पूरा प्रयास किया | मेरा तो यही मानना है कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति इस बात का प्रतिबिम्ब है कि उसकी सोच कितनी सकारात्मक है | और यह बात शायद किसी व्यक्ति पर भी उतनी ही लागू होती है | आज अमेरिका और जापान अगर दुनिया के अग्रणी राष्ट्र है तो वह इसलिए है क्योंकि उनके नागरिकों की सोच हमसे कहीं ज्यादा बेहतर है | उसी तरह अगर आप मानते है कि कई मामलो में भारत पाकिस्तान से आगे है तो यह उसकी बेहतर सोच का ही परिणाम है |

Thursday, August 20, 2009

एक तीर कई निशाने


इस लेख में संजीवजी ने यह विश्लेषण किया है कि भाजपा ने जसवंत सिंह को क्यों निकला | परन्तु मैं यह सोच रहा हूँ कि जसवंत सिंह ने आखिर वह किताब लिखी ही क्यों | इसको लेकर मेरी दो धारणाएं हैं | पहली : जसवंत सिंह अपनी नई पार्टी बनाना चाहते हैं | उन्हें भाजपा में अपना कोई भविष्य दिख नहीं रहा था या शायद उन्हें भाजपा का ही कोई भविष्य नहीं दिख रहा | ऐसे में एक विवादस्पद किताब या लेख लिख कर ही वे इतना प्रचार पा सकते हैं कि अपना एक स्वतंत्र राजनितिक अस्तित्व खड़ा कर सके | लेकिन जिन्ना पर ही किताब क्यों | जिन्ना की प्रशंसा करके और बटवारे का उत्तरदायित्व नेहरूजी पर डालकर शायद वे कांग्रेस और भाजपा दोनों से अपने आप को अलग बताना चाहते हों | राजस्थान में लोग भाजपा और कांग्रेस दोनों को आजमा चुके हैं और दोनों से ही लोगों को गहरी निराशा हाथ लगी है | शायद जसवंत सिंह राजस्थान में एक तीसरे विकल्प के रूप में उभारना चाहते हो | जो व्यक्ति विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री जैसे पदों पर रह चुका हो वो भी ऐसे समय जब कारगिल युद्ध और विमान अपहरण जैसी घटनाएँ हुई हो उसके पास लिखने के लिए सामग्री की तो कोई कमी नहीं होनी चाहिए | पर उन सब विषयों पर तो राजनीति से सन्यास लेने पर ही किताबें लिखी जाएँगी | अभी तो कोई ऐसी किताब चाहिए जो उन्हें राजस्थान की राजनीति में स्थापित कर सके | दूसरी धारणा यह है कि वे पाकिस्तान का कोई पुरस्कार पाने के जुगाड़ में हैं वर्ना कोई ६२ साल पुराने गडे मुर्दे क्यों उखाडेगा | यह सर्वविदित है वह जिन्ना ही थे जिनकी अध्यक्षता में मुस्लिम लीग ने १९४० में अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग रखी थी और जिन्ना के आव्हान पर ही १९४६ में धार्मिक दंगे शुरू हुए थे | ऐसे में कोई कैसे जिन्ना को बटवारे के लिए दोषी ठहराने को गलत बता सकता है | ऐसा हो सकता है कि बटवारे पर अंतिम मुहर नेहरूजी और कांग्रेस ने लगाई हो लेकिन इससे जिन्ना और मुस्लिम लीग की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती | यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि मेरी इन धारणाओं में से कौन सी सही साबित होती है | अगर कुछ दिनों में जसवंत सिंह एक नयी पार्टी की घोषणा करे या पाकिस्तान सितारा-ए-इम्तियाज़ से उन्हें पुरस्कृत करे तो मुझे याद किजीयेगा |

Sunday, August 16, 2009

जो सेलिब्रिटी नहीं हैं उनका क्या...

शाहरुख़ को नेवार्क हवाई अड्डे पर दो घंटे रोके जाने पर बीबीसी हिंदी ने पाठको की राय मांगी है कि "क्या शाहरुख़ को रोका जाना उचित था" |

http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2009/08/090816_shahrukh_new_pp.shtml

http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?forumID=9612

मेरे विचार में उसका शीषर्क होना था "जो सेलिब्रिटी नहीं है उनका क्या ....." (जो कि राजेश प्रियदर्शी के एक ब्लॉग का शीर्षक था ,
http://www.bbc.co.uk/blogs/hindi/2009/08/post-17.html#commentsanchor , उसमे "रितेश" नाम से मेरी टिपण्णी भी छपी है )

भारत में दो तरह लोग रहते हैं , राजशाही और आम जनता | शाहरुख़ वर्षो पहले राजशाही के सदस्य बन चुके हैं और आम जनता की तरह पंक्ति में खड़े रह कर अपनी बारी का इंतजार करना भूल गए हैं | मैं स्वयं नेवार्क एअरपोर्ट से गुजर चूका हूँ और हमें भी कुछ कागजी कार्यवाही के लिए एक घंटे इंतजार करना पड़ा था | लेकिन वहां भेदभाव जैसा कुछ नहीं था | हर व्यक्ति से पूछताछ या कागजी कार्यवाही पूरी करने में उन्हें ५-१० मिनट का समय तो लगता ही है और अगर आपके सामने ८-१० लोग हो तो एक घंटे तक इंतजार करना पड़ ही सकता है | पिछले ८ वर्षो की हवाई यात्रा के अनुभव से कह सकता हूँ कि अगर आपका सामान आपका साथ नहीं हो और आपसे सावल न पूछे जाए तो यह बहुत अपवाद वाली बात होगी | मुझे लगता है कि शाहरुख़ से इसीलिए पूछताछ की गयी | १५ - २० घंटे सफ़र करने के बाद एक घंटे एअरपोर्ट पर बैठना बहुत ही कष्टदायक होता है | लेकिन भारत के आम आदमी को इससे बहुत परेशानी नहीं होती क्योंकि उसे तो सरकारी तंत्र के आगे मत्था टेकने और अपना गुस्सा पी जाने की आदत है | भगवान का शुक्र है कि कहीं तो भारत की राजशाही और आम आदमी एक पायदान पर खड़े होते हैं |

भाजपा बनाम आरएसएस

BBC हिंदी पर संजीव श्रीवास्तव का यह ब्लॉग छपा है |

http://www.bbc.co.uk/blogs/hindi/2009/08/post-24.html

इसमें संजीवजी ने काफी हद तक सही लिखा है | वाजपेयी जी के सन्यांस , अडवाणीजी के बड़बोलेपन और राजनाथजी की अयोग्यता ने भाजपा को बहुत नुकसान पहुँचाया है | लेकिन भाजपा की वर्तमान स्तिथि के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है यह पता करना कठिन है | वर्तमान में अगर कोई भाजपा का नेतृत्व सम्हालने योग्य है तो वह नरेन्द्र मोदी है | चूँकि मोदीजी संघ के प्रचारक रह चुके है इसलिए संघ को उनको नाम पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए | शायद अडवाणीजी या राजनाथजी की महत्वकांशा ही भाजपा अध्यक्ष पद और उसके सही उत्तराधिकारी के बीच आ रही है | अगर २००९ का लोकसभा चुनाव मोदीजी के नेतृत्व में लड़ा जाता तो परिणाम कुछ और भी हो सकता था | भाजपा को पहले एक कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है और फिर अपने बुनियादी संगठन को मजबूत करने की तभी उसका उत्थान संभव है |