इस लेख में संजीवजी ने यह विश्लेषण किया है कि भाजपा ने जसवंत सिंह को क्यों निकला | परन्तु मैं यह सोच रहा हूँ कि जसवंत सिंह ने आखिर वह किताब लिखी ही क्यों | इसको लेकर मेरी दो धारणाएं हैं | पहली : जसवंत सिंह अपनी नई पार्टी बनाना चाहते हैं | उन्हें भाजपा में अपना कोई भविष्य दिख नहीं रहा था या शायद उन्हें भाजपा का ही कोई भविष्य नहीं दिख रहा | ऐसे में एक विवादस्पद किताब या लेख लिख कर ही वे इतना प्रचार पा सकते हैं कि अपना एक स्वतंत्र राजनितिक अस्तित्व खड़ा कर सके | लेकिन जिन्ना पर ही किताब क्यों | जिन्ना की प्रशंसा करके और बटवारे का उत्तरदायित्व नेहरूजी पर डालकर शायद वे कांग्रेस और भाजपा दोनों से अपने आप को अलग बताना चाहते हों | राजस्थान में लोग भाजपा और कांग्रेस दोनों को आजमा चुके हैं और दोनों से ही लोगों को गहरी निराशा हाथ लगी है | शायद जसवंत सिंह राजस्थान में एक तीसरे विकल्प के रूप में उभारना चाहते हो | जो व्यक्ति विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, वित्त मंत्री जैसे पदों पर रह चुका हो वो भी ऐसे समय जब कारगिल युद्ध और विमान अपहरण जैसी घटनाएँ हुई हो उसके पास लिखने के लिए सामग्री की तो कोई कमी नहीं होनी चाहिए | पर उन सब विषयों पर तो राजनीति से सन्यास लेने पर ही किताबें लिखी जाएँगी | अभी तो कोई ऐसी किताब चाहिए जो उन्हें राजस्थान की राजनीति में स्थापित कर सके | दूसरी धारणा यह है कि वे पाकिस्तान का कोई पुरस्कार पाने के जुगाड़ में हैं वर्ना कोई ६२ साल पुराने गडे मुर्दे क्यों उखाडेगा | यह सर्वविदित है वह जिन्ना ही थे जिनकी अध्यक्षता में मुस्लिम लीग ने १९४० में अलग राष्ट्र पाकिस्तान की मांग रखी थी और जिन्ना के आव्हान पर ही १९४६ में धार्मिक दंगे शुरू हुए थे | ऐसे में कोई कैसे जिन्ना को बटवारे के लिए दोषी ठहराने को गलत बता सकता है | ऐसा हो सकता है कि बटवारे पर अंतिम मुहर नेहरूजी और कांग्रेस ने लगाई हो लेकिन इससे जिन्ना और मुस्लिम लीग की जिम्मेदारी कम नहीं हो जाती | यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि मेरी इन धारणाओं में से कौन सी सही साबित होती है | अगर कुछ दिनों में जसवंत सिंह एक नयी पार्टी की घोषणा करे या पाकिस्तान सितारा-ए-इम्तियाज़ से उन्हें पुरस्कृत करे तो मुझे याद किजीयेगा |
Thursday, August 20, 2009
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ब्लॉग की दुनिया में नया दाखिला लिया है. अपने ब्लॉग deshnama.blogspot.com के ज़रिये आपका ब्लॉग हमसफ़र बनना चाहता हूँ, आपके comments के इंतजार में...
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