शाहरुख़ को नेवार्क हवाई अड्डे पर दो घंटे रोके जाने पर बीबीसी हिंदी ने पाठको की राय मांगी है कि "क्या शाहरुख़ को रोका जाना उचित था" |
http://www.bbc.co.uk/hindi/news/2009/08/090816_shahrukh_new_pp.shtml
http://newsforums.bbc.co.uk/ws/hi/thread.jspa?forumID=9612
मेरे विचार में उसका शीषर्क होना था "जो सेलिब्रिटी नहीं है उनका क्या ....." (जो कि राजेश प्रियदर्शी के एक ब्लॉग का शीर्षक था ,
http://www.bbc.co.uk/blogs/hindi/2009/08/post-17.html#commentsanchor , उसमे "रितेश" नाम से मेरी टिपण्णी भी छपी है )
भारत में दो तरह लोग रहते हैं , राजशाही और आम जनता | शाहरुख़ वर्षो पहले राजशाही के सदस्य बन चुके हैं और आम जनता की तरह पंक्ति में खड़े रह कर अपनी बारी का इंतजार करना भूल गए हैं | मैं स्वयं नेवार्क एअरपोर्ट से गुजर चूका हूँ और हमें भी कुछ कागजी कार्यवाही के लिए एक घंटे इंतजार करना पड़ा था | लेकिन वहां भेदभाव जैसा कुछ नहीं था | हर व्यक्ति से पूछताछ या कागजी कार्यवाही पूरी करने में उन्हें ५-१० मिनट का समय तो लगता ही है और अगर आपके सामने ८-१० लोग हो तो एक घंटे तक इंतजार करना पड़ ही सकता है | पिछले ८ वर्षो की हवाई यात्रा के अनुभव से कह सकता हूँ कि अगर आपका सामान आपका साथ नहीं हो और आपसे सावल न पूछे जाए तो यह बहुत अपवाद वाली बात होगी | मुझे लगता है कि शाहरुख़ से इसीलिए पूछताछ की गयी | १५ - २० घंटे सफ़र करने के बाद एक घंटे एअरपोर्ट पर बैठना बहुत ही कष्टदायक होता है | लेकिन भारत के आम आदमी को इससे बहुत परेशानी नहीं होती क्योंकि उसे तो सरकारी तंत्र के आगे मत्था टेकने और अपना गुस्सा पी जाने की आदत है | भगवान का शुक्र है कि कहीं तो भारत की राजशाही और आम आदमी एक पायदान पर खड़े होते हैं |
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